देशबिहारराज्यलोकल न्यूज़

अब कौन कहेगा  चलिए जनाब चल के कश्मीर देखिए…” शायर शकील सासरामी नहीं रहे



✍️ सैयद आसिफ इमाम काकवी

पटना, 12 जुलाई 2025 आज सुबह 9 बजे एक ख़बर आई और जैसे रूह काँप उठी। शकील सासरामी साहब नहीं रहे। इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहि राजिऊन। जिनकी शायरी से दिल महकते थे, जिनकी बातों से जज़्बात सजते थे, जिनकी सलाह से हम जैसे नौजवानों को राह मिलती थी, वो आज खामोशी की चादर ओढ़कर इस फ़ानी दुनिया से रुख़सत हो गए। एक शायर नहीं, एक दौर चला गया। 05 जुलाई 1966 को जन्मे शकील सासरामी शायरी की वो रूह थे जिनकी नज़्में, अशआर और मतले आज भी बिहार के हर अदबी महफिल में गूंजते हैं। उनकी एक पंक्ति आज बार-बार याद आ रही है:

जन्नत की लेके हाथ में तस्वीर देखिए
चलिए जनाब चल के कश्मीर देखिए”

शायद अब वो सचमुच “जन्नत” की ओर चले गए हैं…

शकील सासरामी पटना क्या करेंगे जाके सासाराम हम,
कर रहे हैं पाटलिपुत्रा में जबकि काम हम…”

शकील सासरामी ने शायरी की उस विरासत को जिया, जो सिर्फ़ कलाम नहीं, एक जज़्बा, एक तहज़ीब, एक दर्द की ज़ुबान होती है। वह नाम मात्र का शायर नहीं, बल्कि एक ऐसे कारवां के रहनुमा थे जिन्होंने हर मंच पर सासाराम की ज़मीन को, बिहार की सरज़मीं को अपनी शायरी से गौरवांवित किया। उनकी शायरी में मोहब्बत थी, मजलूमियत थी, और सबसे बढ़कर हक़ की सदा थी।शकील सासरामी की पहचान सिर्फ़ एक शायर के रूप में नहीं थी, वह अपने वजूद में एक अदब थे, एक सलीका थे। उन्होंने शायरी को सियासी नारेबाज़ी से दूर रखकर उसे दिल और ज़मीर की आवाज़ बनाए रखा।उन्होंने पटना की अदबी महफ़िलों को अपनी मौजूदगी से सजाया, और सासाराम की मिट्टी की खुशबू हर ग़ज़ल में बिखेरी। जश्न-ए-उर्दू, मुशायरों और काव्य सम्मेलनों में उनकी मौजूदगी रोशनी की तरह होती थी। उनकी शायरी में शहरों की दूरियाँ मिट जाया करती थीं। वो सिर्फ़ मंचों के शायर नहीं थे, वो हर ग़मज़दा दिल के साथी थे, हर अदबी पोस्ट के पीछे छुपा हुआ एक खामोश उस्ताद थे। Bihar 24×7 और Kako Page के वे बेहद सक्रिय सदस्य रहे। मेरे हर लेख, हर पोस्ट, हर कलाम पर उन्होंने अपनी मोहब्बत, अपनी दुआ, और अपना नज़रिया दिया। वो सही मायनों में एक बुज़ुर्ग, एक उस्ताद, एक साया थे  जिनकी हर बात हौसला बनकर मिलती थी। आज न सिर्फ़ एक शायर गया है एक युग चला गया है, एक आवाज़ जो अब महफ़िलों में नहीं गूंजेगी लेकिन दिलों में हमेशा ज़िंदा रहेगी।वो कहते थे —

तुमको हर चीज़ मुँह चिढ़ाएगी
ज़िंदगी जब समझ में आएगी”

हमें अब समझ आ रहा है, कि कुछ लोग चले जाते हैं… लेकिन उनके अल्फ़ाज़, उनकी मोहब्बत और उनकी दुआएं
हमेशा हमारे साथ रह जाती हैं। अलविदा शकील सासरामी साहब आप सिर्फ़ शायर नहीं थे  अब आपकी हर ग़ज़ल में, हर शब्द में हम आपको तलाशा करेंगे…

क़लम थम गई, पर कारवां चलता रहेगा…”

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!