जरूरी है महिलाओं का सशक्तिकरण


दिल्लू सिंह
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है सभी महिलाओं को इस रूप में शक्तिशाली बनाना जिससे अपने बारे में वे खुद के लिए निर्णय लेने में सक्षम हो सकें, वे निर्णय लेने के लिए किसी पर आश्रित न हों। उदाहरण के लिए पहले के समय में महिलाएं घर की चारदीवारी के अंदर रहती थीं,और अपने किसी भी फैसले के लिए मर्दों की इच्छा पर निर्भर रहती थी परंतु आज महिलाए घर से बाहर निकलकर हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी निभा रही है। वह अपनी हर तरह की समस्या का डटकर सामना कर रहीं हैं।आज ही क्यों महिला सशक्तिकरण का नमूना गार्गी, मैत्रेई जैसी विदुषी से लेकर रानी लक्ष्मीबाई, पन्ना धाय जैसी वीरांगना से कल्पना चावला तक अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं।
हमारा समाज अब बहुत आगे बढ़ चुका है लेकिन लोगों की सोच आज भी नही बदली।कई लोग आज भी महिलाओं को सिर्फ काम करवाने और खाना बनाने, घर संभालने वाली ही समझते हैं, मगर कभी सोचा आपने इस पर-
जिम्मेदारियों का बोझ परिवार पर पडा़ तो ऑटोरिक्सा, ट्रेन चलाने लगी बेटियाँ, साहस के साथ अंतरिक्ष को भेद डाला, सुना वायुयान भी उड़ाने लगी बेटियाँ।
हर एक क्षेत्र में शक्ति आजमाने लगी बेटियां ,वीर की शहादत पर अर्थी को कान्हा देकर अब श्मशान तक जाने लगी बेटियाँ ।
इसके बावजूद ज्वलंत प्रश्न है कि कोख में क्यों मरती है बेटियां ?
महिला सशक्तिकरण के लिए जरूरी है उनमें शिक्षा का प्रचार-प्रसार। शिक्षा से उनमें अपने अधिकार – कर्तव्य का बोध होगा, अनचाहे प्रतिरोध, शोषण के खिलाफ उनमें जागृति पैदा होगी। इससे वे उन कष्टों को झेलने से बच जायेंगी जो अपनी इज्जत बचाने के लिए ब्लैकमेल , शारीरिक हिंसा सब कुछ सहन करती हैं। परिणाम यह होता है कि आगे बहुत तरह के रोगों का शिकार बन जाती हैं।
इसलिए महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनको शिक्षित करने में घर-परिवार, समाज सबको सार्थक पहल करनी चाहिए क्योंकि अगर एक लड़का पढ़ता है तो सिर्फ एक घर संवरता है जबकि अगर एक लड़की पढ़ती है तो वह कुल- खानदान , समाज को संवारती है। इसके लिए सरकार भी बहुत प्रयत्न कर रही है। तरह-तरह के योजनाएं चला रही है। जैसे ” बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ,एकल पुत्री योजना सहित महिला उत्थान के लिए अनेक योजनाएं चला रही है।इन सारी योजनाओं के सार्थक परिणाम भी दिख रहे हैं। इससे सामाजिक संकेतकों में और सुधार लाया जा सकता है।
भिलाई रोड, विष्णु नगर,आरा