गजल: अलका मिश्रा जी को समर्पित


कविताएं भावों का बयान होती हैं. व्यक्ति जो बातें सीधे शब्दों में कह नहीं पाता उन्हें कागज पर इस अंदाज में उतार देता है जैसे माला में मोती पिरोए जाते हैं. चाहे खून में देशभक्ति का लहू दौड़ाना हो या फिर हारे हुए को हिम्मत बंधानी हो, चाहे सत्ता हिलानी हो या किसी से प्यार जताना हो, कविताएं (Poems) चंद शब्दों में दिल का हाल कह देती हैं. कविताएं/ ग़ज़ल खोए हुए को मंजिल दिखा देती हैं तो टूटे हुए दिल का सहारा भी बनती हैं.
राजस्थान की ममता मंजुला जी ने एक गजल समर्पित किया है बिहार की बेटी अलका मिश्रा जी के लिए जो एनएनएम सिक्योरिटीज के वाइस प्रेसिडेंट हैं, साथ ही बहुत बड़ी सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं
ममता मंजुला(राजस्थान)जी
बहुत अच्छी कविता, गजल लिखती हैं
ग़ज़ल
इन हौसलों से सीखा दरिया को पार करना।
मौज़ों से तुमने सीखा तूफ़ाँ से रार करना।
मुड़कर कभी न देखा राहों पे चल पड़ी जो,
सीखा हमेशा आँखें मंज़िल से चार करना।
दिल में यही तमन्ना बाँहों में आसमाँ हो,
तुम चाँद छूने दोगे इतना क़रार करना।
गहरी किताब जैसा किरदार तुमने रखकर,
सीखा है अपने दिल के सपनों से प्यार करना।
ये शोहरतें ये दौलत क़दमों में आ गिरेंगीं,
आने लगा है ख़ुद पे अब एतबार करना।
मुझपे भी नाज़ होगा इस वक़्त को कभी तो,
इस वक़्त ने सिखाया मुझे बेक़रार करना।
ज़िद्दी बहुत हैं ‘अलका’ये हसरतें तुम्हारी,
इनपे न भूलकर भी पत्थर से वार करना।
✍️ममता मंजुला