देशबिहारराज्यलोकल न्यूज़

इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन करेगा बच्ची की पैरवी


जहानाबाद
बच्ची से बलात्कार के प्रयास के एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर तीखी टिप्पणियों के साथ सुप्रीम कोर्ट की रोक को गैरसरकारी संगठन तटवासी समाज न्यास ने बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण की दिशा में अहम कदम करार दिया है। शीर्ष अदालत ने इस फैसले के खिलाफ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) की विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार करते हुए उसे पीड़िता की पैरवी की इजाजत दी है। बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए देश के 416 जिलों में काम कर रहे 250 से भी ज्यादा गैरसरकारी संगठनों का नेटवर्क जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) इस कानूनी लड़ाई की अगुआई करेगा ताकि पीड़िता की गरिमा और अधिकारों की रक्षा हो सके और उसके साथ न्याय सुनिश्चित हो। जहानाबाद में बाल अधिकारों की सुरक्षा व संरक्षण के लिए कार्य कर रहा तटवासी समाज न्यास जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन का एक अहम सहयोगी है।
तटवासी समाज न्यास के निदेशक कन्हैया कुमार सिंह ने कहा, “अगर देश में एक भी बच्चा अन्याय का शिकार है तो जेआरसी उसके साथ है। न्यायपालिका बच्चों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील है जो सुप्रीम कोर्ट के मामले का स्वत: संज्ञान लेने से स्पष्ट है। जेआरसी अब इस बच्ची को न्याय दिलाने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। जेआरसी बच्चों के लिए एक न्यायपूर्ण दुनिया बनाने की लड़ाई लड़ रहा है और हम जिले से बच्चों के खिलाफ बाल विवाह, बाल यौन शोषण और बाल मजदूरी जैसे अपराधों के खात्मे के लिए प्रतिबद्ध हैं।”          
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ ही तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह स्तब्ध करने वाला और असंवेदनशील फैसला है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 11 साल की एक पीड़िता के मामले में फैसले में कहा था कि वक्ष पकड़ना, सलवार का नाड़ा खोलना और उसे घसीट कर पुलिया के नीचे ले जाने को बलात्कार का प्रयास नहीं माना जा सकता। शीर्ष अदालत ने भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और मामले से जुड़े सभी पक्षों को नोटिस जारी किए हैं।
मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह की खंडपीठ ने हाई कोर्ट के फैसले में जाहिरा तौर पर नजर आने वाली असंवेदनशीलता पर कड़ी आपत्ति जताई और उसकी टिप्पणियों को “चौंकाने वाला और कानून की किसी भी समझ से रहित” करार दिया।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन और पीड़िता के परिवार की ओर से अधिवक्ता रचना त्यागी ने कहा, “इस मामले में साढ़े तीन साल से अधिक समय तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई और तीन साल से ज्यादा समय तक कानूनी कार्यवाही बिना किसी औपचारिक जांच के चलती रही। एक गरीब और कमजोर परिवार की इस बच्ची के साथ यह लापरवाही गंभीर अन्याय है। हमें इस बात से राहत मिली है कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारी विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार कर लिया है। हम पीड़िता की हरसंभव मदद और उसे न्याय दिलवाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
खंडपीठ ने विवादित फैसले पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि फैसले में की गई कुछ टिप्पणियां, विशेष रूप से पैरा 21, 24 और 26  की सामग्रियां घोर असंवेदनशील हैं। पीठ ने कहा कि यह फैसला चार महीने लंबी विचार-विमर्श की प्रक्रिया के बाद आया, फिर भी यह अमानवीय और कानून के सिद्धांतों के विपरीत है।
निचली अदालत ने इसे बलात्कार के प्रयास का मामला मानते हुए आरोपियों पवन और आकाश को आईपीसी की धारा 376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत तलब किया था। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसले में कहा कि बच्ची के वक्ष को छूना और उसे जबरन पुलिया के नीचे घसीटकर ले जाना, फिर राहगीरों के पहुंचते ही भाग जाना, कानूनन बलात्कार के प्रयासआईपीसी की धारा 376/511) या पॉक्सो एक्ट की धारा 18 के तहत बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता। इस आधार पर हाई कोर्ट ने आरोपी पर लगाए गए आरोपों में फेरबदल कर दिया और उस पर धारा 354(बी) और पॉक्सो एक्ट की धारा 9/10 लगाई गई।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!