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रमेश ‘कँवल’,बिहार प्रशासनिक सेवा के सेवा निवृत पदाधिकारी रविवरीय अंक के लिए संकलित


कविता विकास,नोएडा की ग़ज़ल
अदब का बीज बोना चाहिए था
ये जीवन यूँ न खोना चाहिए था
कोई सपना सँजोना चाहिए था
भरोसा ख़ुद पे होना चाहिए था
जिन्हें चंदा सलोना चाहिए था
नहीं अच्छे हैं नस्ले-नौ के तेवर
अदब का बीज बोना चाहिए था
यही लगता था बेचैनी में हमको
तुम्हारा साथ होना चाहिए था
परेशानी में घुलते रहते थे तुम
मेरे कांधे पे रोना चाहिए था
जहाँ चलती हमारे मन की मरजी
वही तो एक कोना चाहिए था
भला कैसे नहीं मिलता कोई हल
ज़रा ख़ुद में बिलोना चाहिए था
——कविता विकास